Sunday, January 23, 2011

महात्मा गांधी के आत्मीय थे ब्रजकिशोर प्रसाद

अमरेश्वरी चरण सिन्हा

दरभंगा। भारत में गांधी जी के दक्षिण अफ्रिका से लौटकर संघर्ष प्रारंभ करने का इतिहास जब से प्रारंभ होता है, उस समय बिहार के बाबू ब्रजकिशोर प्रसाद स्थापित कांग्रेसी नेता थे। कालांतर में राज कुमार शुक्ल को महात्मा गांधी से मिलवाने और चम्पारण के गिरमिटिया कानून भंग कराने के संघर्ष में उनकी महत्वपूर्ण ही नहीं, अपितु सूत्रधार की भूमिका थी। उन्होंने 1921 से 1933 तक बिहार कांग्रेस में एकछत्र राज किया था। उल्लेखनीय होगा कि लखनऊ में 1916 ई. में बड़े समारोह के साथ कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था। जिसमें चम्पारण के लोगों के साथ राज कुमार शुक्ल भाग लिये थे। इन लोगों से ब्रजकिशोर बाबू का लगाव भले ही वकील के रूप में शुरू हुआ, परन्तु उन्होंने बिना फीस लिये भी मुकदमों में चम्पारण के सताये किसानों का सहयोग किया। इतना ही नहीं कांग्रेस पार्टी में चम्पारण की समस्या को उन्होंने पूरी मजबूती से रखा था। क्योंकि मुकदमों से जुड़े होने के कारण, उस क्षेत्र में हो रहे अत्याचार से वह भली-भांति परिचित थे। ब्रजकिशोर प्रसाद के ही सभापतित्व में सर्वप्रथम चम्पारण का प्रस्ताव बिहार-प्रांतीय कॉन्फ्रेंस में रखा गया, जो पास भी हुआ था। यहां यह बताना भी जरूरी होगा कि ब्रजकिशोर प्रसाद इम्पीरियल कौंसिल में उस समय बिहार के एक मात्र प्रतिनिधि थे। इस प्रकार महात्मा गांधी को चम्पारण ले जाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका नजर आती है। इतिहासकारों ने इसी आंदोलन के बाद स्वतंत्रता संग्राम में गांधी-युग का प्रादुर्भाव माना है। मूल रूप से वर्त्तमान सीवान जिला के श्रीनगर के रहने वाले ब्रजकिशोर बाबू का कार्यक्षेत्र दरभंगा ही रहा। चम्पारण आंदोलन के बाद असहयोग आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका नजर आती है। दरभंगा में उनकी अध्यक्षता में धरणीधर प्रसाद के प्रस्ताव पर दरभंगा व्यवहार न्यायालय में आयोजित बैठक में ''नेशनल स्कूल'' का प्रस्ताव पारित हुआ था। जिसके कर्त्ताधर्त्ता बाबू कमलेश्वरी चरण सिन्हा बनाये गए थे। जिन्होंने आम लोगों के सहयोग से मुहल्ला लालबाग में नेशनल स्कूल की स्थापना की। असहयोग आंदोलन के क्रम में ब्रजकिशोर बाबू, धरणीधर प्रसाद सरीके अनेक लोग छात्रों के लिए संचालित वर्गों में पढ़ाने का काम करते थे। ब्रजकिशोर प्रसाद की बड़ी लड़की प्रभावती जी लोकनायक जयप्रकाश नारायण की पत्नी थी और उनकी छोटी लड़की की शादी भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के पुत्र मृत्युंजय प्रसाद से हुई थी। आज की पीढ़ी को शायद यह ज्ञात न हो कि ब्रजकिशोर प्रसाद की पुत्री और जे.पी. की पत्नी प्रभावती जी को महात्मा गांधी और कस्तूरबा की मानस पुत्री होने का सौभाग्य मिला। गांधी और बा की नजर में प्रभावती जी की क्या थी, इसका एक मात्र दृष्टांत पर्याप्त है। गांधी और बा जेल में बंद थे और आगाखां महल में कस्तूरबा अन्तिम सांसे गिन रही थीं। तब सरकार ने बा की सेवा के लिए एक व्यक्ति को साथ रखने की अनुमति दी। उस समय बा की इच्छानुसार महात्मा गांधी ने प्रभावती जी को बुलाया था। उन दिनों प्रभावती जी भी भागलपुर जेल में बंद थी। काफी दिक्कतों के बाद उनका स्थानान्तरण आगाखां महल जेल में हुआ था। कस्तूरबा की मृत्यु शय्‌या के पास गांधी जी के पास जो दो लोग थे, उनमें ब्रजकिशोर प्रसाद की पुत्री प्रभावती भी थी। इस प्रकार ब्रजकिशोर बाबू और महात्मा गांधी के बीच आन्तरिक स्नेह का पता चलता है। दरभंगा को यह सौभाग्य प्राप्त है कि यहां स्वतंत्रता संग्राम के जिन तीन लोगों ने गांधी-युग में जबरदस्त काम प्रारंभ किया उनमें ब्रजकिशोर प्रसाद, धरणीधर प्रसाद और कमलेश्वरी चरण सिन्हा प्रमुख थे। बाद में कारवां बढ़ता गया और सफलता मिलती गई। मृत्युपरांत ब्रजकिशोर प्रसाद के चित्र का अनावरण करने के लिए भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के बिना नेशनल स्कूल, दरभंगा में आकर अपने लगाव का दृष्टांत प्रस्तुत किया था। जिसका जिक्र जय प्रकाश नारायण ने कमलेश्वरी बाबू की शोक सभा में उसी स्थान पर करते हुए इतिहास का पुनरावलोकन कराया था।