Saturday, January 3, 2009

सामाजिक सरोकार रखने वाले हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा के स्रोत - गुप्ता जी

जाने-माने शायर साहिर लुध्यािनवी का मानना है कि :- ध्ड़कने रूकने से अरमान नहीं मर जाते, सांस थम जाने से ऐलान नहीं मर जाते,होंठ जम जाने से पफरमान नहीं मर जाते, जिस्म की मौत कोई मौत नहीं होती। पत्राकार राम गोविन्द प्रसाद गुप्ता की जिस्मानी मौत का यह अर्थ नहीं कि अपने जीवन काल में उन्होने जो सपने देखे थे, मृत्यु के साथ ही वे सभी दपफन हो गये। सामाजिक सरोकार से जुड़े उन सपनों को साकार करने में उनके दोनो पत्राकार पुत्रा अहर्निश लगे हुए है। स्व- गुप्ता ने स्थानीय पत्राकारों को एक-दूसरे से जोड़ने व समाज में एकता कायम करने का जो अपना प्रयास अध्रूा रख छोड़ा था, उसे आगे बढ़ाने का काम उनके दोनो ही पुत्रा कर रहे है। स्व- गुप्ता पत्राकार के रूप में आजीवन सयि रहे। स्थानीय स्तर पर जब कोई भी समस्या आती थी, वह सबको एकत्राित करके उसके निदान का यथासाहस प्रयास करते रहे। बाहर से भूले-भटके पत्राकार यदि दोनार चौक तक आ भी जाते थे तो उन्हे आगे बढ़कर न सिपर्फ उनसे परिचय पूछते बल्कि खाने-पीने से लेकर उनके ठहरने का भी वे बंदोबस्त करते थे। चूंकि वे समाचार एजेन्सी से जुड़े थे इसलिए उनका सरोकार सीमित न होकर व्यापक स्तर पर पफैला था। दरभंगा पहुंचने वाला हर अखबार नवीस गुप्ता जी तक पहुंचना नहीं भूलता था। अपनी सदाशयता के कारण वे हरदिल अजीज थे। स्थानीय समाज में भी उन्हे हर तबका के लोग बड़े ही आदर की दृष्टि से देखते थे। वे जब तक जिन्दा रहे, उन्होने बड़ी निष्ठा से अपने सरोकार को निभाया। उनके छोटे पुत्रा प्रमोद गुप्ता भी अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए पत्राकारों के बीच एकता बनाये रखने की दिशा में प्रयत्नशील रहते है। अतिथि सत्कार की-पैतृक विरासत को भी वे उसी निष्ठा के साथ अक्षुण्ण रखने के लिए सदा तत्पर रहते है। सामाजिक स्तर पर समस्याओं के निराकरण की भी चिंता उन्हे सतत सालती रहती है। ऐसे में प्रशासनिक स्तर से कैसे उनका निदान हो, इस दिशा में वे कारगर प्रयास करने से नहीं चूकते है। पत्राकार जगत में अग्रज पीढ़ी के प्रति आदर भाव रखना तथा नयी पीढ़ी के पत्राकारों के लिए सतत स्नेह भाव रखना प्रमोद ने अपने पिता से सीखा है। किसी भी परिस्थिति में र्ध्यै नहीं खोना स्व- गुप्ता के स्थायी स्वभाव में शामिल था। इसी तरह स्व- गुप्ता की प्रतिबता समाज के प्रति भी थी। इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है उनका जनप्रतिनिध्ि होना। आध्ुनिक युग में जनता का प्रतिनिध्ि बनने के लिए लोगों को एक साथ सब तरह के हथकंडे अपनाने होते है लेकिन स्व- गुप्ता ने इतने आसान ढंग से नगर निगम का चुनाव जीत लिया, जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता है। एक जनप्रतिनिध्ि के रूप में गुप्ता जी को लोग आज भी याद करते है। उनके उपकार ण को यहां का समाज कभी चुका नहीं सकता है। हालांकि सामाज ने ‘उण’ होने के लिए उनके ज्येष्ठ पुत्रा प्रदीप गुप्ता को नगर निगम के चुनाव में खड़े होने का न्योता दिया और उसी समाज ने प्रदीप को भारी मतों से जीता कर जनप्रतिनिध्ि का खिताब दे डाला। किसी व्यक्ति के सामाजिक कार्यो का सम्मान इस तरह से किया जाना निस्संदेह एक ऐसा उदाहरण होगा जिसपर आने वाली पीढ़ियां पफ करती रहेंगी। कहने का अभिप्राय यह कि सचमुच गुप्ता जी आज हमारे बीच नही हैं लेकिन उनके द्वारा किये गये सामाजिक कार्य खासकर ऐसे व्यक्तियों के लिए जो अपने जीवन में कुछ कर गुजरने का माद्दा रखते हैय के लिए ‘पाथेय’ का काम करेंगे, इसी विश्वास के साथ मैं उनके प्रति अपना आदर भाव प्रदर्शित करते हुए उन्हे श्रा-सुमन अर्पित करता हू।
डॉ- कृष्ण कुमार

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